शनिवार, 6 दिसंबर 2014

माया राज में यादव सिंह यूं बने 'धनकुबेर'

According to NAV BHARAT News Think how YADAV SINGH progressed in corruption with the association of State Govt.

नोएडा
नोएडा और यादव सिंह की तरक्की साथ-साथ हुई। न्यू ओखला इंडस्ट्रिअल डिवेलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) लगातार फल-फूल रहा है लेकिन यादव सिंह ने अपनी तरक्की पर पर्दा डाल लिया। अब वह खुद को यह बताने में असमर्थ पा रहे हैं कि उन्होंने बेशुमार संपत्ति कहां से अर्जित की। जब नोएडा का फैलाव हो रहा था तब यादव सिंह से ट्रैक रेकॉर्ड के बारे में कुछ परेशान करने वाले सवाल पूछे गए थे। तब यादव सिंह थोड़ी परेशानी के बाद इन सवालों से निकलने में कामयाब रहे थे।

सिंह की यात्रा 1980 में नोएडा अथॉरिटी के साथ शुरू होती है। तब इन्होंने इस बॉडी में जूनियर इंजिनियर के पद पर जॉइन किया था। इन्होंने शहर के लिए सरकारी योजनाओं में जल निकासी, फुटपाथ और पार्क का निर्माण शुरू किया। आज की तारीख में नोएडा प्रवासी मिडल क्लास के लिए पसंदीदा जगह है।

1980 में नोएडा का विकास हो रहा था। तब नोएडा को वैसे इंजिनियर्स की जरूरत थी जो इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को तय वक्त के साथ जमीन पर उतार सकें। लगभग इसी वक्त ग्रेटर नोएडा में बादलपुर गांव की एक युवा दलित महिला मायावती राजनीतिक करियर बनाने में लगी थीं। वह वक्त भी आया जब मायावती के पास बहुजन समाज पार्टी की कमान आ गई।

भारत के सबसे ज्यादा आबादी और सबसे ज्यादा लोकसभा सीट (80) वाले उत्तर प्रदेश में मायावती की हुकूमत आई। वह यूपी की सत्ता में चार बार आईं। माया पहली बार 2007 से 2012 तक पूरे पांच साल सत्ता में रहीं। इस दौरान यादव सिंह की तरक्की जारी रही। वह पब्लिक की निगाहों में आए। यादव सिंह की पहचान अब पब्लिक में अनजानी नहीं थी।

सिंह एक महत्वाकांक्षी इंजिनियरिंग डिप्लोमा होल्डर थे। नेटवर्किंग स्किल के दम पर सिंह अपने बॉस के विश्वासपात्र बनने में कामयाब रहे। नोएडा में जूनियर इंजिनियर के रूप में काम करते हुए यादव सिंह जमकर मेहनत करते थे। वह नौकरी के साथ जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बैचलर ऑफ इंजिनिरिंग की क्लास भी करते थे।

यादव सिंह के एक रिश्तेदार ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, 'वह आगरा बेस्ड फैमिली में हीरो की तरह थे। उस दौरान वह अपने परिवार के लिए नाम कमाना चाहते थे। 1995 में इन्होंने बैचलर ऑफ इंजिनियरिंग की पढ़ाई खत्म की। 2003 में इन्होंने मास्टर ऑफ इंजिनियरिंग और 2012-13 में पीएचडी पूरी की।'

सिंह का जन्म दलित परिवार में हुआ था। 1995 में वह नोएडा अथॉरिटी में सीनियर प्रॉजेक्ट इंजिनियर बने। इसके बाद वह बड़े पब्लिक प्रॉजेक्ट्स डील करने लगे। जब मायावती 2002 में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं तब सिंह को चीफ प्रॉजेक्ट इंजिनियर (सीपीई) के रूप में नियुक्त किया गया। यूपी सरकार के मुताबिक सीएमई पोस्ट चीफ इंजिनियर लेवल-2 के बराबर है।

एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, 'एक चीफ इंजिनियर की पब्लिक प्रॉजेक्ट्स में सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसमें सरकारी भवनों का निर्माण, रोड, ब्रीज, अंडरपास, फुटपाथ, पार्क, स्कूल, हॉस्पिटल और फ्लाईओवर्स आते हैं। चीफ इंजिनियर ही इन प्रॉजेक्टस की देखभाल करता है। उसे 1 करोड़ से ऊपर तक के प्रॉजेक्ट को अप्रूव करने का अधिकार होता है।'

प्रॉजेक्ट्स का प्लान नोएडा चीफ इंजिनियर के जिम्मे है लेकिन सभी कामों की अनुमति नोएडा चीफ एग्जेक्युटिव ऑफिसर से लेनी होती है, क्योंकि सभी तरह की शक्ति इंडस्ट्रिअल ऐक्ट 1976 के मुताबिक यहीं निहित है।

27 नवंबर को सिंह घपले में बेनकाब हुए। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने दावा किया कि उनके घर और ऑफिस में बेशुमार संपत्ति मिली है। ये सारी संपत्ति यादव सिंह और उनकी पत्नी कुसुमलता की है। 100 अधिकारियों की एक टीम ने यादव सिंह और कुसुमलता से जुड़ी 20 इमारतों नोएडा, दिल्ली और गाजियाबाद में सर्च ऑपरेशन चलाया। सेक्टर 51 में सिंह के आवास से इनकम टैक्स अधिकारियों को 12 लाख रुपए नकद मिले। लेकिन आंख खोलने वाली 10 करोड़ की बरामदगी अश्विनी कुमार की कार से हुई। अश्विनी कुमार को यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता का बिजनस पार्टनर बताया जा रहा है।

यादव सिंह और उनसे जुड़े लोगों के 20 लॉकर अभी खोले जाने बाकी हैं। यूपी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के डीजी एके त्रिपाठी ने कहा कि, 'हमें अभी 20 लॉकर खोलने हैं और देखना है कि उनमें क्या है। हम अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। जांच अभी जारी है इसलिए इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। छापे में मिली डायरियां और दूसरे कागजात भी हमने अभी नहीं खोले हैं।'

एके त्रिपाठी ने बताया कि आईटी टीम यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता के नाम से रजिस्टर्ड दो फर्म्स 'ममता क्रिएशंस' और 'मीनू क्रिएशंस' की पड़ताल कर रही है। एक आईटी ऑफिशल ने नाम छिपाने की शर्त पर बताया, 'हमारी जांच में पता चला कि यादव सिंह ने 35 नकली कंपनियों में इन्वेस्ट किए हैं। इन कंपनियो का पता कोलकाता में बताया है। अभी यह जांच करनी बाकी है उन्होंने इन नकली कंपनियों में इन्वेस्ट कैसे किया।'

आईटी सर्च टीम से लोगों ने बताया है कि सिंह हर कॉन्ट्रैक्ट पर 5 पर्सेंट कमिशन लेते थे। इनकम टैक्स अधिकारियों ने बताया कि यादव सिंह ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए सस्ती जमीन खरीदी और ऊंची कीमत पर बेची। जब बीएसपी 2007 में सत्ता में आई तो यादव सिंह को फिर से नोएडा अथॉरिटी का इंजियनियर-इन-चीफ बनाया गया। जब 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो इनके खिलाफ 954 करोड़ की अंडरग्राउंड केबल योजना में अनियमितता को लेकर एफआईआर दर्ज हई।

इसके बाद एसपी सरकार ने यादव सिंह को उनके पद से हटा दिया। हांलाकि राज्य की एजेंसियों को सिंह के काम में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई। 2013 में यादव सिंह को क्लीन चिट मिल गई और इस तरह उन्होंने वापसी की।

एसपी सरकार ने सिंह को फिर से चीफ इंजिनियर बना दिया। आखिरकार, यूपी सरकार ने नवंबर में उन्हें सभी तीन अथॉरिटीज (नोएडा, ग्रेटर नोएडा और एक्सप्रेस वे) का चीफ इंजिनियर अपॉइंट किया। यह पहली बार था कि किसी एक इंसान को तीनों अथॉरिटीज का चीफ इंजिनियर बनाया गया। मौजूदा वित्तीय वर्ष में विकसित हो रहे तीनों इंडस्ट्रियल अथॉरिटीज को 20,000 करोड़ का फंड मिला है।